कुकुरमुत्ते की तरह तेजी से बढ़ रहे शिक्षण संस्थान, यह चिंता की बात’: CJI एनवी रमना

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर खेद जताते हुए कहा कि यह अंग्रेजों के समय की पद्धति की तरह है। उन्होंने कहा कि इसमें बदलाव लाने की सख्त जरूरत है। तेजी से बढ़ रहे शिक्षा संस्थानों की वजह से वे अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं। छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने और वैज्ञानिक जांच और रिसर्च कल्चर को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।’शिक्षण संस्थान अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे’सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि शिक्षा का एक ऐसा मॉडल विकसित करना चाहिए जो छात्रों को वास्तविक जीवन की चुनौतियों का सामना करना सिखाए, न कि आज्ञाकारी कार्यबल की तरह वो सिर्फ काम करें। उन्होंने कहा कि मुझे बड़े ही अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि, कुकुरमुत्ते की तरह तेजी से बढ़ते शिक्षा के कारखानों की वजह से शिक्षण संस्थान अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं।”सीजेआई ने आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय से डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्राप्त करने के बाद दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि शिक्षा को सामाजिक एकता हासिल करने और लोगों को समाज का बेहतर सदस्य बनाने में सहायक होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य औपनिवेशिक काल की तरह ही एक आज्ञाकारी कार्यबल तैयार करना रह गया है।’शिक्षा के कारखानों में हो रही तेजी से वृद्धि’सीजेआई ने कहा कि, “सत्य ये है कि हम शिक्षा के कारखानों में तेजी से वृद्धि देख रहे हैं, जो डिग्री और मानव संसाधनों के अवमूल्यन की ओर ले जा रहे हैं। मुझे समझ नहीं आता कि किसे या किस तरह दोष दें। सीजेआई ने शिक्षा व्यवस्था में बदलाव पर जोर देते हुए कहा कि यह देश में बदलाव का समय है। यूनिवर्सिटी अपने रिसर्च विंगों की सहायता से इसका सामाधान खोजे। सरकार भी इसमें फंड देकर उनकी मदद करे।सीजेआई ने कहा कि विश्वविद्यालयों को भी अपने स्तर पर अपनी घरेलू क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए। साथ ही छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने और वैज्ञानिक जांच और रिसर्च कल्चर को प्रोत्साहित करने के लिए विश्वविद्यालयों को प्रसिद्ध अनुसंधान और विकास संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिए। रिसर्च और इन्वोशन के लिए फंड निर्धारित करने के लिए राज्य की से सक्रिय सहयोग होना चाहिए।

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